तुम जगत की ज्योति हो, तुम धारा के नमक भी हो

 

तुम जगत की ज्योति हो,
तुम धारा के नमक भी हो ।।2।।

1. तुमको पैदा इसलिए किया।
तुमको जीवन इसलिए मिला ।।2।।
उसकी मर्जी कर सको सदा ।।2।।

2. वो नगर जो बेस शिखर पर ।
छिपता ही नहीं, किसी की नजर ।।2।।
तुम्हारे भले कामों, चमके इस तरह ।।2।।

3. पड़ोसी से प्रेम, तुमने सुना है।
दुश्मनों से प्रेम, मेरा कहना है ।।2।।
तब ही तुम संतान, परमेश्वर समान ।।2।।

4. आँख के बदले आँख, बुराई का सामना है ।
फेरो दूसरा गाल, सह लो सब अन्याय।।2।।
ऐसा जीवन ही, पिता को भाता है ।।2।।

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