को०- क्यों नहीं गाउँ मैं प्रभु भजन हो ।।2।।
मेरा मन हो ये
बदनं सारा जीवन ।
उन्हीं का है ।।2।।
1. उन्हीं से सारी सृष्टि बनी है ।
एक से एक अनमोल
।।2।।
उन्हीं की महीमा
का वर्णन होता,
प्रभु मसीहा नाम
बोल रे ।।2।।
2. पर्वत नदियाँ वन उपवन और
चौरस भूमि झरना
।।2।।
पशु अरू पक्षी
मिलकर गाते
करते हैं नित
वंदना रे ।।2।।
3. उन्ही
से हमको जीवन मिलता
ज्ञान धन अरू
मान ।।2।।
सृष्टि करता
पालन हारा ।
सभी पे रखता
ध्यान रे ।।2।।