ओह दैया धीरज धरल मन

 

    ओह दैया धीरज धरल मन

    विश्वास राखल करम प्रभु संभड़ाय

 

1. थीर पानी पखन काटे कहुता कहाय ए भाई

    कमियां आदमी के जानू, जहाँ काम आहे

    ओहे स्वर्ग बुझाय ।।2।।

 

2. प्रेम के प्रेमे खिंचेल, मन भरी जाय, - ए भाई।

    बेकारी बेकार जि, घुन तरी खाय । ।

    सेके केहर समझाय ।।2।।

 

3. हाथ में लिखल रेखा, किस्मत कहाय, ए भाई

    कमियां आदमी के देखी प्रभु मुसुकाय

    बिगड़ल बनी जाय ।।2।।

 

4. जन्म मरण ऋतु धरती केर है, ए भाई

    प्रभु पर जेहर टेकी जीवन बिताय

    सेतो कभी नी सिराय ।।2।।

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