को०- मनवा रे करी लेऊ तनी भभना
चाइ दिन केर
जिन्दगानी है, सेऊ न कभी आपना ।।2।।
1. जाइत गैर मनवा फिर भेद भावना
छुवा छुत बड़
छोट कर डींग हॉकना,
रौरे हेकी मनवा,
इके भुलना, मनुख जनम गवांना ।।2।।
2. दुनिया में सभे चाहेन अन्न सम्भाना,
इकर बिना दुनिया
में नखे ठिकाना
प्रेम लेखे अन्न
धन और खजाना,
कोन धन होई उकर
समाना
जे स्वर्गों में
देवेल ठेकाना ।।2।।
3. जहाँ मॉय और बाप गुरूक मान घटी गेल,
बुझू हुवां से
ईश्वर उठी चली गेल
कहां अमन चैन जब
रौर आत्मा मरताहे क्षान बिना रे
बिरथा है सरग
सपना ।।2।।