को०- दुसर के दुःख देखी न कहबे रे कभी न सोचबे रे
उकर अपन करम केर
फल है । हमतो हेकी खानदानी
सम्पन्न घर केर, उकर पूरखा मनक केर पाप है
1. देखा थी दिन रति उकर नखे भिन्न राती होवी
रूपयो
देले होवी नहीं
दिल ।।2।।
नहीं दिन, काहे ऐसन भावना, अरे मूरख मावना
मरी जाबे केहर
पुछी तोके प्रभु बिन रे , दुसर ....
2. चार दिनक जिनगी के का गुमान है
प्रभु बिना ई सब
कुछ असमान है
भजू प्रभु नाम
के देखु गरीब जनके,
प्रेमी लेखे
दुनियां में के महान है ।
3. खुलल जीव के प्रभु पसन्द करैना,
आवे जावेना कभी
डेरो करैना
अपने के भी देखु
दुसर के भी देखु, करी
देखु ई काम में
कतई मजा है, दुसर...